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वीआईपी कस्टमर (कहानी)

*वीआईपी कस्टमर (कहानी)* ✍🏻 *विपिन वियान हिंदुस्तानी* संध्या और सुगंधा काफी अच्छी दोस्त थी। दोनों के पिता बिनोदपुर में अल्ट्रासाउंड का काम करते थे लेकिन दोनों की आर्थिक स्थिति में जमीन आसमान का अंतर था। सुगंधा : तुम कॉलेज के पिकनिक टूर पर क्यों नहीं जा रही हो। संध्या : घर में पैसे की अभी दिक्कत चल रही है। छोटी बहन कोटा में मेडिकल की तैयारी कर रही है। उसे भी पापा पैसे नहीं भेज पाए हैं। सुगंधा : यार, आखिर तुम्हारे पापा इतना पैसा करते क्या हैं। मेरे पापा से ज्यादा तुम्हारे पापा के यहां पेशेंट की भीड़ रहती है। तुम्हारे पापा के जांच का रेट भी थोड़ा टाइट है। संध्या : तुम ठीक कहती हो। इस बात को लेकर मम्मी पापा में भी खूब झगड़ा होता है लेकिन आज तक मैंने कभी कुछ नहीं पूछा है।  लोहा गर्म देखकर एक शातिर मुस्कान के साथ  सुगंधा : कहीं दूसरी मम्मी वाली तो कोई बात नहीं  संध्या अपनी दोस्त को जोरदार थप्पड़ रसीद कर देती है चुड़ेल अपनी हद में रह नहीं तो जुबान की चटनी बना दूंगा। सुगंधा गुस्से में "जाकर अपने बाप से पूछ कहां रायता फैला रहा है।" संध्या रोते हुए घर आ जाती है। तभी उसकी अपने पापा शेख
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शायरी

1. भंवर में फंसकर भी अक्सर निकलता रहा हूं, जहां पकड़ होती है मजबूत, फिसलता रहा हूं, जलने वालों के दुआओं का क्या खूब असर है, घने अंधेरे के बीच दीपक की तरह जलता रहा हूं ©® विपिन वियान हिंदुस्तानी 2. मुझे अपनी पत्नी पर बहुत फख्र था कि जान से ज्यादा मुझे चाहती है वो, खाना खा कर हाथ पर्दे से पोछ लिया, मत पूछिए गुस्से में क्या क्या सुनाती है वो, ©® विपिन वियान हिंदुस्तानी 3. उनके ख्यालों में डूबते ही, जिंदगी शाहबाज हो जाता है, पता ही नहीं चलता कब दिन और कब रात हो जाता है, खुदा की मेहरबानियों की फेहरिस्त बेशक बहुत लंबी है, तेरे उदास चेहरे का ख्याल और मेरा दिल उदास हो जाता है, 4. हम वफा करके भी बेवफ़ा हो गए, कोई दगा करके भी बावफा हो गए, उनकी किस्मत वो तो सजदा हो गए, हम किसे बताएं, क्या से क्या हो गए ©® विपिन वियान हिंदुस्तानी 5. सभी को शिकायत है कि जनाब बदमिजाज है, अब किस किस को बताएं, वजह क्या खास है, हर बात मुस्कुरा कर करने वालों से रहिए सचेत, इस अदा के घायल हर महफिल में कई कद्रदान है ©® विपिन वियान हिंदुस्तानी 6. कारवां साथ लेकर चलने की ख्वाइश थी, इसलिए थोड़ा पीछे रह गया, अगर कोई फिसले तो स

हालात

हालात ने किया मजबूर और हम बदल गए, थी जहां पकड़ मजबूत, वहां भी फिसल गए, आस्तीन के सांपों का यह बड़ा बेरहम जहर है, उलझनों में डालते ही कमबख्त निकल गए, @ विपिन वियान हिंदुस्तानी

मुक्तक

गनीमत है,वक्त के दिए दर्द का दवा ही अब तक ढूंढ रहा हूं, जख्म देने की लत लग गई तो दर्द भी दर्द से कराह उठेगा, मेरी खामोशी का हर वक्त यूं मजाक मत उड़ाया करो, अगर बेशर्मी पर उतर आया तेरे जैसा बेशर्म भी शरमा जायेगा... ✍🏻 विपिन वियान हिंदुस्तानी लोग कहते हैं, रास्ते कठिन हैं,बताओ भाई आसान कब था, कदम कदम पर है धोखेबाज, इस बात से अनजान कब था, आने वाले वक्त के बारे में सोच सोच कर परेशान क्यों होना, राम सीता ने किया पग पग त्याग, किस्मत मेहरबान कब था ? जितना है, लुटाते चलिए, फकीरों का का क्या है, कदम से कदम बढ़ाते चलिए, लकीरों का क्या है, हर किसी को खुश करने में व्यर्थ समय क्यों गवाना, जहां दिल करे सर झुकाते चलिए, मंदिरों का क्या है, जितना हो दीपक जलाते चलिए, अंधेरे का क्या है, जो भी मिले अपनाते चलिए, ख्वाइशों का क्या है, ले जाने को सिकंदर भी साथ क्या ले जा सका था, सत्कर्मों से नाम चमकाते रहिए, सुंदर चेहरे का क्या है, कोई मेरी एक मुस्कान की खातिर तड़पता रहा, और वक्त ने कदम कदम पर मुझे धोखा दिया, जब तलक वक्त को मुझ पर तरस आया था, मेरे अपनों ने मुस्कुराने का कोई मौका नहीं दिया, किसी ने आंसुओं के

हमारा बिहार

आइए करें उस भूमि को नमन,  जिसने दिया दुनियां को गणतंत्र, बुद्ध, चाणक्य यह की जन्मस्थली,  बौद्ध, जैन धर्म से हुआ जगत पावन, सम्राट अशोक, मौर्य की यह मातृभूमि, जहां जन्म लिया आर्यभट्ट, विद्यापति,

हमें चाहिए आजादी

*अंतराष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष प्रस्तुति* *हमें चाहिए आजादी* खूब सजाए हमने सपने उम्रभर, टूटते देखा, दिल पर पत्थर रखकर, किसे दिखाऊं, इन अरमानों का खंडहर, मौन रही प्रतिबंधों की दीवारों में घूट घूट कर, बचपन गुजरा भेदभाव में सिमटकर, किशोरवास्था सामाजिक वर्जनाओं में तड़पकर, हमारे मन की कहां किसी को सुनने की फुर्सत, दुनियां ने किया पसंद मुझे रंग रूप देखकर, दया माया की मूरत बनती रही तपकर, अत्याचार और शोषण, सहे तो कबतक, हमें हमारा गर्व और स्वाभिमान लौटा दो, अपने नजरिए को बदल हमें सबला बना दो, आजादी के सफर में भी सबका मान रखेंगे, अपने से जुड़े सभी भावनाओं का ध्यान रखेंगे, पंख फैला कर खुले आसमान में उड़ने दो, तंग गलियों से निकल सबका कल्याण करेंगे... ✍🏻 *विपिन वियान हिंदुस्तानी*       *कटिहार, बिहार*

साजिश

हर उम्मीद पर यहां पानी फिर जाता है, नोचने को गिद्धों में युद्ध छिड़ जाता है, शिकवा और शिकायत हम करें तो किससे, मद्धिम सी किरण, साजिशों में घिर जाता है,